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फिल्म ‘मेरे हसबैंड की बीवी’ की बीवी है रकुल प्रीत, बड़ी लाइन पर लौटे मुद्दसर

       

Movie Review

मेरे हसबैंड की बीवी
कलाकार
अर्जुन कपूर , रकुल प्रीत सिंह , भूमि पेडनेकर , कंवलजीत सिंह , अनीता राज , शक्ति कपूर , हर्ष गुजराल और आदित्य सील
लेखक
मुदस्सर अजीज
निर्देशक
मुदस्सर अजीज
निर्माता
वाशू भगनानी , जैकी भगनानी और दीपिका देशमुख
रिलीज
21 फरवरी 2024
रेटिंग
3/5

वैसे तो शेक्सपियर ने कहा है कि नाम में क्या रखा है? लेकिन, मेरा ये पक्का मानना है कि नाम में बहुत कुछ रखा है। खासतौर से नाम अगर किसी फिल्म का हो। ‘छावा’ नाम महाराष्ट्र के घर घर में प्रचलित है और उसकी लोकप्रियता को एक औसत फिल्म को कितना फायदा मिल सकता है, फिल्म ‘छावा’ की सफलता इसका सबूत है।

फिल्म का कथानक कितना असली है, कितना बनावटी, इस पर बहस अब भी जारी है और जिस थियेटर में ‘छावा’ के एक ही दिन 18 शोज चल रहे हो, उसी सिनेमाघर में ‘मेरे हसबैंड की बीवी’ की स्पेशल स्क्रीनिंग देखने पहुंचे अधिकतर दर्शकों का ये मानना रहा कि इस फिल्म की दो ही सबसे बड़ी कमियां हैं, एक इसका नाम और दूसरा अर्जुन कपूर के दोस्त बने स्टैंड अप कॉमेडियन हर्ष गुजराल। ये सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर अगर अपने सारे फॉलोअर्स सिनेमाघर तक ले आएं तो भी ठीक है, नहीं तो बस्सी हों या गुजराल, सिनेमा की ‘स्मूथनेस’ में अटकते-खटकते ही नजर आते हैं। इसके बावजूद अपनी एनिवर्सरी मना रहे फिल्म के निर्माता जैकी भगनानी ने अपनी पत्नी रकुलप्रीत को एक अच्छा तोहफा देने में कामयाबी पाई है।

फिल्म ‘तू झूठी मैं मक्कार’ में अनुभव सिंह बस्सी ने फिल्म को एक सहज प्रवाह की फिल्म बनाने में सबसे बड़ा रोड़ा अटकाया था, यहां हर्ष गुजराल किसी बात का फ्लो ही नहीं बनने देते। वह दाल भात में मूसरचंद हैं। कहानी फुटबॉल खेलने वाली अंतरा पर स्कूल के समय से मर मिटे अंकुर चड्ढा की है जो शादी एक टीवी जर्नलिस्ट से कर लेता है। पत्रकारों के अपने अलग ही रायते होते हैं

और आमतौर पर सामान्य दुनिया के लोगों को समझ नहीं आते। हसबैंड नामी बिल्डर हो तो दिल्ली एनसीआर के किसी चैनल के दफ्तर जाकर बीवी का सामान समेट ला सकता है, ये दिखाने के साथ फिल्म का सियापा शुरू होता है, कहानी में चौथा कोण लाकर। चूंकि फिल्म का पोस्टर खुद कहता है कि कहानी त्रिकोण नहीं सर्किल है, तो थोड़ा गोल गोल घूमकर फिल्म दर्शकों को उस दौर में ले जाने की कोशिश करती है, जब जीतेंद्र और रेखा की ‘मांग भरो सजना’, ‘जुदाई’, ‘अपना बना लो’ जैसी फिल्मों में कभी नाजनीन तो कभी मौसमी चटर्जी जन्म जन्म के बंधन को लीज समझने की भूल कर बैठती थीं।

फिल्म ‘मेरे हसबैंड की बीवी’ की कहानी ठीक है। अपनी पहली मोहब्बत से दूसरी लड़की से शादी और तलाक के बाद फिर से टकरा जाने और इस बार मोहब्बत दूसरी तरफ से भी जाग जाने का ये मसला है। सरप्राइज एलिमेंट इस फिल्म का ये है कि हालात के चलते लड़के को अपनी तलाकशुदा बीवी के साथ रहना पड़ जाता है। उसका तलाक के बाद एक आशिक भी है। लेकिन, ये खिचड़ी इतनी खिली खिली सी पकती है कि इसका असल किस्सा बताकर आपका फिल्म देखने का मजा खराब करना ठीक नहीं। मुदस्सर अजीज फिल्म के निर्देशक हैं। फिल्म लिखी भी उन्होंने ही है। 20 साल पीछे की बातें जिनको याद होंगी, उनको पता ही होगा कि मुदस्सर की बोहनी सिनेमा में बतौर राइटर ही हुई। साल 2010 में वह डायरेक्टर बने और ‘हैप्पी भाग जाएगी’ व ‘पति पत्नी और वो’ के जरिये इतना खूंटा तो मुंबई में गाड़ चुके हैं कि ‘खेल खेल में’ जैसी मल्टीस्टारर फिल्में भी उन्हें निर्देशन के लिए मिल जाती हैं।

मुदस्सर अजीज ने फिल्म की कहानी, इसकी पटकथा और इसका निर्देशन सब कुछ बहुत सोचा समझा रखा है। पटकथा लेखन के इसमें सारे फॉर्मूले आजमाए गए हैं। एक एक टेंट पोल बहुत करीने से ताना गया है। जहां फिल्म कमजोर पड़ने लगती है तो कभी शक्ति कपूर आ जाते हैं तो कभी कंवलजीत और अनीता राज।

बेहद सीरियस सीन में भी टीकू तलसानिया को लाकर वह कहानी का तंबू संभाले रहते हैं। बस फिल्म की कास्टिंग में उनसे दो गलतियां हुईं। एक हर्ष गुजराल की और दूसरी भूमि पेडनेकर की।

भूमि पेडनेकर का प्राकृतिक सौंदर्य जबसे शल्य चिकित्सा शास्त्र से मिलकर आया है, उनके मुखमंडल का भूगोल बदल चुका है। और, इस बदले बदले से आभामंडल में आकर्षण कम विकर्षण ज्यादा है। या हो सकता है कि रकुल प्रीत की नैसर्गिक खूबसूरती को और उभारने के लिए जानबूझकर ही फिल्म बनाने वालों ने ऐसा किया हो।

रकुल प्रीत सिंह बेहद सहज और सरल अभिनेत्री हैं। अब तक के करियर में वह बार बार खुद को साबित करती रही हैं, लेकिन उनके अभिनय की बात आमतौर पर बड़े सितारों के बीच ज्यादा होती नहीं है। फिल्म ‘मेरे हसबैंड की बीवी’ की बीवी वह ही हैं यानी फिल्म का टाइटल रोल वह कर रही हैं। अर्जुन कपूर के साथ मिलकर रकुल प्रीत ने चंद बेहद मर्मस्पर्शी सीन इस फिल्म में रचे हैं। उम्र के साथ साथ शरीर से भी बढ़ते जा रहे अर्जुन कपूर का करीब करीब डूब चुका करियर इस फिल्म में रकुल प्रीत, जैकी भगनानी और मुदस्सर अजीज ने बचाया है। अर्जुन को लाखों में सिमट गई अपनी पिछली फिल्म ‘लेडी किलर’ सपने में डराती रहती है और इसीलिए मेहनत भी उन्होंने फिल्म में काफी की है। शायद ये पहली फिल्म होगी जिसमें अर्जुन कपूर को परदे पर देखकर लगता नहीं कि वह एक्टिंग कर रहे हैं। अंकुर चड्ढा बनने में कामयाब रहे अर्जुन की जोड़ी बस हर्ष गुजराल के साथ नहीं बनानी चाहिए थी।

हर्ष गुजराल को इस फिल्म में ‘इंट्रोड्यूस’ किया गया है। परदे पर वह ऐसा दिखाते हैं जैसे एक्टिंग उनका पुश्तैनी पेशा रहा है। फैमिली ऑडियंस के बीच हिंदी का एक भी स्टैंड अप कॉमेडियन अपनी जगह अब तक नहीं बना पाया है। जाकिर हुसैन कुछ हद तक इसमे कभी कभी कामयाब हो जाते हैं लेकिन उनको देखते हुए खतरा बना ही रहता है कि पता नहीं कब ये लड़का (या आदमी) एकदम से सख्त हो जाए। फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट अच्छी है। शक्ति कपूर की तीसरी या चौथी पारी जो भी हो फिल्म ‘एनिमल’ के बाद जमने लगी है। बस ये ‘आऊ’ वाला बैकग्राउंड म्यूजिक अब उन पर सूट नही करता। स्टुअर्ट इदुरी को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। बाकी फिल्म के गाने सब धान 22 पसेरी वाले हैं। एक भी महकने वाला नहीं है। लंबाई फिल्म की थोड़ी ज्यादा है। दो घंटे पांच मिनट की ये फिल्म परफेक्ट होती। फिल्म मनोरंजक है और वीकएंड में अपने साथी के साथ टाइमपास के लिए देखी जा सकती है।

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