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हरदोई की होली की अनसुनी कहानी: जानिए कैसे एक बेटे की बगावत ने बदल दी इतिहास की धारा

       

हरदोई की होली की अनसुनी कहानी: जानिए कैसे एक बेटे की बगावत ने बदल दी इतिहास की धारा। उत्तर प्रदेश का हरदोई भक्त प्रह्लाद की नगरी के नाम से जाना जाता है. पुरानी मान्यता के अनुसार सतयुग में राक्षस राज हिरण्यकश्यप कश्यप की राजधानी थी. वह भगवान हरि का द्रोही था. उसके राज्य में हरि का नाम लेना उनकी पूजा अर्चना करना पूरी तरीके से मना था. ऐसे करने वाले भक्तों को वह मौत के घाट उतार दिया करता था. हरि का नाम लेने वालों की जुबान काट दी जाती थी।

हरदोई की होली की अनसुनी कहानी: जानिए कैसे एक बेटे की बगावत ने बदल दी इतिहास की धारा

ब्रह्मा से वरदान में हिरण्यकश्यप को अमरता का वरदान भी प्राप्त था, लेकिन इसी बीच उसकी पत्नी ने प्रह्लाद नाम के एक सुंदर बालक को जन्म दिया. उम्र बढ़ने के साथ-साथ प्रह्लाद ईश्वर की भक्ति करने लगे थे. इसकी सूचना मिलते ही उसने ईश्वर भक्त प्रह्लाद का वध करने की कोशिश शुरू कर दी थी. उसी ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने के लिए प्रेरित किया था।

हिरण्यकश्यप को ब्रह्म से मिला था वरदान

हरदोई जिला पहले हरि द्रोही के नाम से प्रसिद्ध था. यहां के लोग अपने राजा हिरण्यकश्यप को ही भगवान मानते थे. हिरण्यकश्यप को ब्रह्म से न दिन में न रात में न जमीन पर न आसमान में न किसी अस्त्र-शस्त्र से और न किसी पशु न किसी इंसान से मरने का वरदान प्राप्त था. इस कारण दंभ में चूर हिरण्यकश्यप राक्षस राज के रूप में चारों तरफ मजबूर हो गया था. उसके राज्य में हरि विष्णु की पूजा करने वाले या नाम जपने वाले भक्तों का सिर कलम और जुबान काट ली जाती थी, लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र इस सबसे अनजान होकर श्री हरि की भक्ति कर रहा था।

कब और कैसे भक्त प्रह्लाद विष्णु भक्त हुए?

दरअसल उसने एक कच्ची मिट्टी के बर्तन में कुछ बिल्ली के बच्चों को खेल-खेल में बंद कर दिया था और उसे कच्चे बर्तन को कुम्हार ने गर्म आवे में पका दिया था, लेकिन वह बच्चे उस भयंकर आग से बच गए थे.तभी से उसकी मां ने उसे उनके बचने की वजह भगवान हरि की कृपा होना बताया था. तभी से भक्त प्रह्लाद विष्णु भक्त हो गया था. हरि भक्ति से नाराज हिरण्यकश्यप ने एक बार तालाब में डुबोकर हाथी के पैरों के नीचे कुचलवाकर और बाद में अपनी बहन होलिका के जरिए उसे आग में जलाकर मारने की कोशिश की थी।

प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई थी होलिका

होलिका को ब्रह्मा से वरदान स्वरुप एक ऐसी चुनरी मिली थी, जिसे ओढ़ कर उसपर आग असर नहीं करती थी. इसी वजह से होलिका ने भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर भयंकर अग्नि कुंड में बैठकर उसे मारने का प्रयास किया था, लेकिन हरि इच्छा से होलिका जल गई थी और भक्त प्रह्लाद उसी राख में खेलते हुए सुबह पाए गए थे. तभी से भक्त प्रह्लाद के मानने वाले पहले राख से और फिर गुलाल से होली खेलते चले आ रहे हैं।

हिरण्यकश्यप का वध कब हुआ?

हरदोई के रहने वाले पंडित लालता प्रसाद बताते हैं कि इस घटना के बाद भक्त प्रह्लाद के बच जाने से नाराज उसके पिता हिरण्यकश्यप उसे अपनी सभा में बुलाकर खंभे में बांधकर मारना चाहता था. तभी उसी खंभे को फाड़ कर भगवान श्री हरि ने नरसिंह का अवतार लेकर शाम को देहरी पर अपने पैरों पर डालकर नाखून से हिरण्यकश्यप का पेट फाड़ दिया था. इसके बाद से ही भाईचारे का यह त्योहार होली मनाया जा रहा है. तभी से हरदोई से शुरू हुई यह होली पूरे विश्व में हर्षोल्लास से मनाई जा रही है. हरदोई में भक्त प्रह्लाद कुंड समेत नरसिंह भगवान का मंदिर स्थित है. ऊंचा थोक के नाम से विख्यात वह टीला आज भी मौजूद है. जहां पर भक्त प्रह्लाद का महल हुआ करता था।

हरदोई की होली की अनसुनी कहानी: जानिए कैसे एक बेटे की बगावत ने बदल दी इतिहास की धारा

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