Najafgarh Rename To Nahargarh: नजफगढ़ का नाम बदलने की मांग: जानें क्या है नाहरगढ़ नाम के पीछे की कहानी। भाजपा विधायक नीलम पहलवान ने नजफगढ़ का नाम बदलकर नाहरगढ़ रखने की मांग की है. नीलम पहलवान नजफगढ़ से विधायक हैं. जानिए, नजफगढ़ को कैसे मिला यह नाम और इसे नाहरगढ़ रखने का प्रस्ताव क्यों रखा गया है।
नजफगढ़ का नाम बदलने की मांग: जानें क्या है नाहरगढ़ नाम के पीछे की कहानी
दिल्ली का नजफगढ़ चर्चा में है।चर्चा की वजह हैं कि नजफगढ़ की विधायक नीलम पहलवान, जिन्होंने दिल्ली विधानसभा में इसका नाम बदलने का प्रस्ताव रखा है। नीलम पहलवान ने गुरुवार को सदन में नजफगढ़ का नाम बदलकर नाहरगढ़ करने की मांग की है. उनका कहना है, मुगलों के दौर में दिल्ली देहात के इस इलाके को नाहरगढ़ के नाम से जाना जाता था. कई बार इसका नाम बदलने की कोशिश की गई, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
नजफगढ़ का इतिहास मुगलों से जुड़ा है. दिल्ली के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित नजफगढ़ हरियाणा के गुरुग्राम और बहादुरगढ़ के बॉर्डर पर है. जानिए, नजफगढ़ को कैसे मिला यह नाम और इसे नाहरगढ़ रखने का प्रस्ताव क्यों रखा गया है
कैसे मिला नाम?
नजफगढ़ को यह नाम मिला मिर्जा नजफ खान से. नजफ खान मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय का कमांडर-इन-चीफ रहा है. नजफ खान ने 18वीं शताब्दी में सैन्य चौकी की स्थापना की, बाद यहां से ब्रिटिश, मराठा और सिखों के खिलाफ अभियान चलाए गए।
मुगल सेनापति नजफ खान पर्शिया (अब ईरान) का रहने वाला था. मुगलों का वफादार होने के कारण बादशाह शाह आलम द्वितीय ने उसे कई जिम्मेदारियां दीं. कई जंग की कमान उसके हाथों में दीं. नजफगढ़ के क्षेत्र की कमान नजफ खान को सौंपी गई और वहां पर किले का निर्माण करया गया. सेनापति के नाम पर उसका नाम नजफगढ़ रखा गया. नजफ खान की याद में बाद में नजफ खान का मकबरा भी बनाया गया।
दिल्ली के बॉर्डर पर मौजूद नजफगढ़ को मुगलों के केंद्र दिल्ली को सुरक्षित रखने की रणनीति को ध्यान में केंद्र बनाया गया ताकि बाहरी दुश्मनों को यहीं पर रोका जा सके. 1782 में नजफ खान की मौत के बाद भी मुगलों के लिए यह जगह बहुत खास रही।
नजफ खान की मौत के बाद, यहां का किला राजनीतिक प्रभाव के एक प्रमुख केंद्र में बदल गया, जिस पर कुछ समय के लिए अफगान सरदार ज़बीता खान का कब्ज़ा रहा. इस जगह का जिक्र आइन-ए-अकबरी में भी किया गया है।
1857 की जंग में क्रांतिकारियों के साथ मुगल सेना और ब्रिटिश सेना की भिड़ंत में 800 लोगों की जान गई. मुगल सेना की हार के बाद में नजफ गढ़ अंग्रेजों के कंट्रोल वाले दिल्ली का हिस्सा बना. 1858 में नजफगढ़ में यह दिल्ली जिले में शामिल हो गया. आजादी के बाद के नजफगढ़ निर्वाचन क्षेत्र बन गया।
आजादी की जंग में भूमिका
नजफगढ़ ने 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान अहम भूमिका निभाई, जिसे आजादी की पहली जंग के रूप में भी जाना जाता है. 25 अगस्त, 1857 को नजफगढ़ की लड़ाई ब्रिटिश सेना और भारतीय विद्रोही सैनिकों के बीच हुई थी. इसे नजफगढ़ की जंग के रूप में भी जाना गया।
फिर बहादुर शाह ज़फर की सेना से ने अंग्रेजों से टक्कर लेना शुरू किया. मुगल सेना की हार के बाद दिल्ली में विरोध के प्रयास कमजोर हुए और अंग्रेजों की ताकत बढ़ती गई.ब्रिटिश शासन के दौरान नजफगढ़ एक महत्वपूर्ण सैन्य और व्यापार का केंद्र बन गया. कृषि और व्यापार को बढ़ाने के लिए नहरें और सड़कें विकसित की गईं, हालांकि यह एक ग्रामीण क्षेत्र बना रहा लेकिन समय के साथ इसमें धीरे-धीरे आधुनिकीकरण देखा गया।
नाहरगढ़ नाम रखने का प्रस्ताव क्यों?
सदन में भाजपा विधायक नीलम पहलवान का दावा है कि 1857 की आजादी की जंग में राजा नाहर सिंह ने लड़ाई लड़कर नजफगढ़ क्षेत्र को दिल्ली के प्रांत में शामिल कराया था. हालांकि, कागजी कार्यवाही न होने के बावजूद नजफगढ़ का आज तक नाम नहीं बदल पाया।
बल्लभगढ़ की नींव साल 1609 में बल्लू उर्फ बलराम ने रखी थी. उनके वंशज महाराज राम सिंह के घर 6 अप्रैल 1921 को नाहर सिंह का जन्म हुआ. 18 साल की उम्र में 1839 में उनका राज्याभिषेक हुआ. धीरे-धीरे वो आजादी की जंग में शामिल हो गए. कई ऐसे मौके आए जब उन्होंने अंग्रेजों का सामना किया और मुंहतोड़ जवाब दिया. यही वजह रही कि धीरे-धीरे वो अंग्रेजों कर आंखों की किरकिरी बन गए।
अंग्रेज नाहर सिंह के पराक्रम से त्रस्त थे. इसलिए उन्हें पकड़ने के लिए षडयंत्र रचा. आजादी की जंग में अग्रणी भूमिका निभाने वाले बल्लभगढ़ के वंशज राजा नाहर सिंह को संधि का झांसा देकर दिल्ली बुलाया गया था. उन्हें यह कहकर दिल्ली बुलाया गया कि उनकी मौजूदगी में बहादुरशाह जफर से संधित करना चाहते हैं. जैसे नाहर सिंह लाल किले में पहुंचे अंग्रेजी सेनाओं ने धोखे से उन्हें गिरफ्तार कर लिया.9 जनवरी, 1858 में चांदनी चौक (दिल्ली) में उन्हें फांसी की सजा दी गई।