वेब डेस्क। देवी-देवताओं की काफ़ी मन्नतों और चढ़ावे के बाद पैदा हुआ सिद्धार्थ हेगड़े अपने मां-बाप के एकमात्र संतान थे. उन्होंने व्यवसाय की दुनिया में बड़ा नाम कमाया और कैफे कॉफ़ी डे (सीसीडी) नामक अन्तर्राष्ट्रीय ब्राण्ड को सफलतापूर्वक स्थापित किया. उनके बेटे ने चिकमंगलूर कॉफ़ी को देश और यहां तक कि दुनिया के दूर-दराज़ तक के क्षेत्र में पहुंचाया. लेकिन 96 साल के गंगैया हेगड़े को नहीं पता कि उनका इकलौता बेटा अब इस दुनिया में नहीं है. वे मैसूर के एक निजी अस्पताल में ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं. परिवार के सूत्रों का कहना है कि वे कोमा में चले गए हैं.
हॉस्पिटल में पिता से मिले थे सिद्धार्थ
गंगैया हेगड़े को 15 दिन पहले शंथावेरी गोपाल गौडा अस्पताल, मैसूर में भर्ती कराया गया. ये हॉस्पिटल उनके बेटे सिद्धार्थ के ससुर एसएम कृष्णा के एक रिश्तेदार की है. उनके परिवार के लोगों का कहना है कि वे बुढ़ापे की परेशानियों से ग्रस्त हैं और उनके स्वस्थ होने की उम्मीद काफ़ी कम है.
अभी तीन दिन पहले, सिद्धार्थ मैसूर जाकर अपने पिता से मिले थे. उनके एक चचेरे भाई के मुताबिक, अपने पिता की बिगड़ती हालत देखकर सिद्धार्थ अपने आंसू नहीं रोक पाए थे.
उनके एक रिश्तेदार ने कहा, “मैं नहीं जानता था कि अपने पिता के साथ उनकी ये अंतिम मुलाक़ात साबित होगी. सिद्धार्थ अपने पिता के साथ कुछ घंटे तक रुके और दुबारा आने का वादा करके लौट गए. कौन जानता है कि उनके दिमाग़ में क्या चल रहा था?,”
गांव में है मां
सिद्धार्थ की मां वसंती हेगड़े भी अपने पति के साथ थी पर कुछ दिनों कि बाद वह अपने गांव चीथनहल्ली लौट आयीं. गंगैया हेगड़े काफ़ी धनी हैं और कॉफ़ी बाग़ानों के मालिक हैं. चिकमंगलूर जिले में उनकी काफ़ी इज़्ज़त है. अनुशासन पसंद, मदद करने की भावना और बेवक़ूफ़ियाँ बर्दाश्त नहीं करना उनकी आदतों में शुमार है. लोगों में वे काफ़ी लोकप्रिय हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ साल पहले तक गंगैया हेगड़े चिकमंगलूर के साप्ताहिक बाज़ार में सब्ज़ियों और किराना सामानों की ख़रीद के लिए आते थे.
सिद्धार्थ मैसूर जाकर अपने पिता से मिले थे
पिता से खासे प्रभावित थे
सिद्धार्थ के जीवन पर उनके पिता का काफ़ी प्रभाव था. सिद्धार्थ को लंबे समय से जाननेवाले राघवेंद्र का कहना है, “बचपन में अपने पिता से अच्छे गुण उन्होंने प्राप्त किए थे. गंगैया हेगड़े ने भी अपने बेटे को सारे अच्छे गुण दिए और बेटे ने अपने बाप के गौरव को बढ़ाया. यह काफ़ी दुःख की बात है कि वे अपने बेटे के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सकते. एक तरह से यह अच्छा ही है कि पुत्र-शोक के दुःख को समझ पाने की स्थिति में वह नहीं हैं. ईश्वर ने उन्हें इस संताप से बचा लिया,”
उन्होंने ये भी कहा, “अगर सिद्धार्थ को सभी लोग प्यार करते हैं, तो इसकी वजह सिर्फ़ उसके पिता हैं. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वह ज़मीन से जुड़े रहे. अपनी सफलताओं से उसने अपने पिता को गौरवान्वित किया.”
“सिद्धार्थ व्यवसायियों की पहली पीढ़ी के हैं. उनके परिवार के लोगों और रिश्तेदारों में कोई भी व्यवसाय में नहीं है. वे कॉफ़ी बाग़ान के मालिक हैं. लेकिन युवा सिद्धार्थ में एक तरह की बेचैनी थी. वह कुछ बड़ा करना चाहता था. उसकी दिलचस्पी अपने पिता के कॉफ़ी एस्टेट को संभालने में नहीं थी. वो अपने मां-बाप को अपने सपनों के बारे में आश्वस्त करने में सफल रहा था. उनकी अनुमति से ही वो बेंगलुरु में रहने लगा और फिर कभी अपने गांव वापस नहीं लौट पाया,” उन्होंने कहा.