लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी वक्फ विधेयक पारित: विवाद, संशोधन और NDA बनाम भारत टकराव की पूरी जानकारी

नई दिल्ली। विवादास्पद वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 गुरुवार यानी तीन अप्रैल की सुबह लोकसभा में पारित होने के बाद कल शुक्रवार की रात यह राज्यसभा में भी हो गया. यह विधेयक वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन करता है, जो भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को नियंत्रित करता है. सत्तारूढ़ एनडीए के सदस्यों ने इस कानून का पुरजोर बचाव करते हुए इसे अल्पसंख्यकों के लिए लाभकारी बताया, जबकि विपक्ष ने इसे लोकसभा में लगभग 12 घंटे तक चली बहस के दौरान मुस्लिम विरोधी बताया.
यह बिल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को वक्फ संपत्तियों के रेगुलेशन और मैनेजमेंट में मुद्दों और चुनौतियों का समाधान करने के लिए सशक्त बनाने के लिए व्यापक बदलाव का प्रस्ताव करता है.
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार को लोकसभा में विधेयक को फिर से पेश किया. इससे पहले उन्होंने पिछले साल अगस्त में पहली बार विधेयक पेश किया था, जिसके बाद इसे आगे की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेज दिया गया था. 27 फरवरी को, जेपीसी ने भाजपा या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में उसके सहयोगियों द्वारा पेश किए गए 14 संशोधनों को मंजूरी दी.
कानून में संशोधन क्यों?
सरकार का कहना है कि 1995 के कानून में वक्फ संपत्तियों, टाइटल विवादों और वक्फ भूमि पर अवैध कब्जे के विनियमन से संबंधित खामियां हैं. सरकार द्वारा उठाए गए अन्य प्रमुख मुद्दों में वक्फ बोर्डों के गठन में सीमित विविधता, मुतवल्लियों द्वारा शक्ति का दुरुपयोग, स्थानीय राजस्व अधिकारियों के साथ प्रभावी कोर्डिनेशन की कमी और वक्फ बोर्ड को संपत्तियों पर दावा करने के लिए व्यापक शक्ति देना शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप विवाद और मुकदमेबाजी होती है.
रीजीजू ने बुधवार को लोकसभा में विधेयक पेश करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रशासन को बढ़ाना, टेक्नोलॉजी से संचालित मैनेजमेंट को शामिल करना, मौजूदा जटिलताओं को दूर करना और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है. उन्होंने कहा, “अगर सरकार यह विधेयक नहीं लाती है तो संसद भवन और हवाई अड्डे पर वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जाता.”
सरकारी नियंत्रण?
बिल के आलोचकों को मुख्य रूप से इस बात की चिंता है कि यह सरकार को वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को रेगुलेट करने और यह निर्धारित करने की अनुमति देता है कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं. बिल के खिलाफ सबसे मुखर नेताओं में से एक, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया है कि इसका उद्देश्य वक्फ शासन की नींव को कमजोर करना और मुसलमानों के अधिकारों को कम करना है.
वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधित्व पर चिंता
विधेयक की एक और आलोचना यह है कि यह वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधित्व को बदलता है. बिल में राज्य स्तर पर वक्फ बोर्ड में राज्य सरकार द्वारा एक गैर-मुस्लिम मुख्य कार्यकारी अधिकारी और कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को नियुक्त करने की अनुमति देने का प्रस्ताव है. विधेयक के आलोचकों का तर्क है कि यह समुदाय के अपने मामलों को खुद मैनेज करने के अधिकार में हस्तक्षेप कर सकता है, जो संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है. वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में कहा कि गैर-मुस्लिम किसी भी धार्मिक संस्था में हस्तक्षेप नहीं करेंगे.
प्रैक्टिसिंग मुस्लिम मुद्दा क्या है?
बिल का विरोध करने वालों ने बिल के कई प्रावधानों पर सवाल उठाए, जिसमें केवल उन लोगों को अपनी संपत्ति वक्फ को आवंटित करने की अनुमति देना शामिल है, जो कम से कम पांच साल से प्रैक्टिसिंग मुस्लिम हैं. इस पर कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने सरकार से पूछा कि वह प्रैक्टिसिंग मुस्लिम को कैसे परिभाषित करेगी.
वक्फ संपत्तियां क्या हैं?
भारत में कई संपत्तियां वक्फ के अंतर्गत आती हैं, जिनमें मस्जिद, ईदगाह, दरगाह, खानकाह, इमामबाड़े और कब्रिस्तान (कब्रिस्तान) शामिल हैं. वक्फ संपत्तियां इस्लाम को मानने वाले लोग दान करते हैं और इन्हें समुदाय के सदस्य ही मैनेज करते हैं. प्रत्येक राज्य में एक वक्फ बोर्ड होता है, जो एक कानूनी इकाई है जो संपत्ति का अधिग्रहण, धारण और हस्तांतरण कर सकती है. वक्फ संपत्तियों को स्थायी रूप से बेचा या पट्टे पर नहीं दिया जा सकता है.
वक्फ बोर्ड के पास कितनी जमीन है?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार वक्फ बोर्ड वर्तमान में भारत भर में 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियों को नियंत्रित करता है, जिसका अनुमानित कीमच 1.2 लाख करोड़ रुपये है. भारत में दुनिया की सबसे बड़ी वक्फ होल्डिंग है. इसके अलावा, सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड भारत में सबसे बड़ा जमीन मालिक है.
कितनी चल-अचल संपत्तियां हैं?
वक्फ बोर्ड के तहत 8,72,328 अचल और 16,713 चल संपत्तियां रजिस्टर हैं. वक्फ बोर्ड के तहत 3,56, 051 वक्फ एस्टेट भी रजिस्ट भी रजिस्टर है।
क्या सरकार हस्तक्षेप कर रही है?
जो लोग इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं, वे सवाल उठा रहे हैं कि ऐसा नया कानून क्यों लाया जा रहा है, जो वक्फ के प्रबंधन के तरीके को बदल रहा है. बिल के खिलाफ सबसे मुखर नेताओं में से एक असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया है कि इसका उद्देश्य वक्फ शासन की नींव को कमजोर करना और मुसलमानों के अधिकारों को कम करना है. ओवैसी ने आरोप लगाया है कि इस विधेयक का उद्देश्य मुसलमानों से कब्रिस्तान, खानकाह और दरगाह छीनना है.
आलोचकों के बीच मुख्य चिंता यह है कि सरकार का वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को रेगुलेट करके उन पर कंट्रोल हासिल करना चाहती है और नए विधेयक के माध्यम से उसे यह निर्धारित करने का अधिकार मिल गया है कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं.
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम
इस विधेयक की आलोचना वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधित्व में बदलाव के लिए भी की गई है. इसमें राज्यों में वक्फ बोर्ड में एक गैर-मुस्लिम मुख्य कार्यकारी अधिकारी और कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्य रखने का प्रस्ताव है. आलोचकों का कहना है कि यह मुस्लिम समुदाय के अपने मामलों को खुद मैनेज करने के अधिकार में हस्तक्षेप करेगा, जो कि भारत के संविधान द्वारा दिया गया अधिकार है. सरकार का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य वक्फ बोर्ड के प्रबंधन में एक्सपर्टीज लाना और ट्रांसपेरेंसी को बढ़ावा देना है.
वक्फ मैनेजमेंट में प्रमुख विधायी परिवर्तन क्या थे?
वक्फ अधिनियम 1954 पारित होने से वक्फ के केंद्रीकरण की दिशा में एक मार्ग प्रशस्त हुआ. वक्फ एक्ट 1954 के तहत केंद्र सरकार द्वारा 1964 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना की गई थी, जो एक वैधानिक निकाय है. यह केंद्रीय निकाय विभिन्न राज्य वक्फ बोर्डों के तहत काम की देखरेख करता है, जिन्हें वक्फ अधिनियम, 1954 की धारा 9(1) के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया था.
वक्फ अधिनियम, 1995 को भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन को नियंत्रित करने के लिए अधिनियमित किया गया था. इसने वक्फ परिषद, राज्य वक्फ बोर्डों और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की शक्ति और कार्यों के साथ-साथ मुतवल्ली के कर्तव्यों का भी प्रावधान किया.
यह अधिनियम वक्फ ट्रिब्यूनल की शक्ति और प्रतिबंधों का भी वर्णन करता है जो अपने अधिकार क्षेत्र के तहत एक सिविल कोर्ट के स्थान पर कार्य करता है. इसमें कहा गया है किट्रिब्यूनल का निर्णय अंतिम होगा और पक्षों पर बाध्यकारी होगा.इसके बाद वक्फ प्रबंधन को अधिक कुशल और पारदर्शी बनाने के लिए 2013 में अधिनियम के कुछ प्रावधानों में संशोधन किया गया.