दिल्ली विधानसभा चुनाव: मुस्लिम वोटरों के लिए AAP का खास प्लान, 5 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट। दिल्ली विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मियां बढ़ गई हैं. दिल्ली की सियासत में मुस्लिम समाज लंबे समय तक कांग्रेस को एकतरफा वोट करता रहा है, तो बीजेपी भी उनके लिए अछूत नहीं रही है. बीजेपी के टिकट पर दिल्ली में मुस्लिम पार्षद ही नहीं बल्कि लोकसभा का चुनाव भी जीते हैं. अन्ना आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया तो मुस्लिम कांग्रेस का मोह छोड़कर उनके साथ हो गए, लेकिन एमसीडी के चुनाव में मुस्लिम वोटिंग पैटर्न फिर बदला रहा तो 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के साथ दिखा था. ऐसे में ये सवाल है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय का झुकाव किसकी तरफ रहेगा?
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. केजरीवाल ने पिछली बार की तरह ही दिल्ली में पांच विधानसभा सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें तीन सीट पर अपने पुराने चेहरों पर दांव खेला है तो दो सीट पर नए मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. कांग्रेस ने अभी तक घोषित 21 सीटों में से 3 सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं और दूसरी मुस्लिम बहुल सीटों पर अभी पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस अभी कोई और सीट पर मुस्लिम नेताओं को टिकट दे सकती है.
ओखला सीट से अमानतुल्लाह को टिकट
आम आदमी पार्टी ने ओखला सीट से अपने मौजूदा विधायक अमानतुल्लाह खान को प्रत्याशी बनाया तो मटिया महल सीट से विधायक शोएब इकबाल और बल्लीमरान सीट से विधायक इमरान हुसैन को उम्मीदवार बनाया है. इसके अलावा सीलमपुर और मुस्तफाबाद सीट पर मौजूदा विधायक का टिकट काटकर नए चेहरों को उतारा है. आम आदमी पार्टी ने सीलमपुर से चौधरी मतीन के बेटे जुबैर अहमद को प्रत्याशी बनाया है तो मुस्तफाबाद सीट से आदिल अहमद खान को प्रत्याशी बनाया है.
आम आदमी पार्टी ने इन्हीं पांच सीटों पर 2015 और 2020 में मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे. 2020 में सभी के सभी मुस्लिम प्रत्याशी जीतने में कामयाब रहे थे जबकि 2015 में चार मुस्लिम विधायक चुने गए थे. केजरीवाल ने एक बार फिर से पांच मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, लेकिन देखना है कि इस बार क्या 2020 वाले नतीजा दोहराएगा या फिर कोई सीट खो देगी.
कांग्रेस ने अभी तक तीन सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. बल्लीमरान सीट पर कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक हारून युसुफ को उम्मीदवार बनाया है तो सीलमपुर सीट पर आम आदमी पार्टी से आए मौजूदा विधायक अब्दुल रहमान को कांग्रेस टिकट दिया. इसके अलावा मुस्तफाबाद सीट से मेंहदी अली को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया है. माना जा रहा है कि कांग्रेस ओखला, मटिया महल और बाबरपुर जैसी सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतार सकती है.
देश में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतरने का प्लान बनाया है. मुस्तफाबाद सीट से दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन को प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा ओखला, बल्लीमरान, चांदनी चौक, मटिया महल जैसी मुस्लिम बहुल सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारने की प्लानिंग कर रखी है.
दिल्ली की सियासत में मुस्लिम मतदाता
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटबैंक को साधने के लिए आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी ने अपने-अपने सियासी दांव चले हैं. दिल्ली में करीब 12 फीसदी मुस्लिम, जिसके चलते हर आठवां मतदाता मुसलमान है. दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 8 विधानसभा सीटों पर भी मुस्लिम मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं. बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, मुस्तफाबाद, चांदनी चौक, मटिया महल, बाबरपुर, दिलशाद गार्डेन और किराड़ी मुस्लिम बहुल इलाके हैं. इसके अलावा त्रिलोकपुरी और सीमापुरी इलाके में भी मुस्लिम मतदाता काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं.
मुस्लिम बनाम मुस्लिम की फाइट
दिल्ली के 2024 विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम बनाम मुस्लिम के बीच सियासी संग्राम देखने को मिल सकता है. मुस्लिम बहुल सीटें ओखला, सीलमपुर, मटिया महल, मुस्तफाबाद और बल्लिमरान में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ही नहीं ओवैसी की पार्टी से भी मुस्लिम प्रत्याशी उतर सकते हैं. बीजेपी भी दिल्ली में मुस्लिम प्रत्याशी उतारती रही है. ओखला, सीलमपुर और पुरानी दिल्ली की सीट पर चुनाव लड़ाती रही है. बीजेपी दिल्ली में सीलमपुर से किसी मुस्लिम को प्रत्याशी बना सकती है.
दिल्ली में मुस्लिम वोटिंग पैटर्न
दिल्ली की राजनीति में मुस्लिम वोटर बहुत ही सुनियोजित तरीके से मतदान करते रहे हैं. एक दौर में मुस्लिमों को कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता था. मुस्लिम समुदाय ने दिल्ली में 2013 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट किया था. वहीं, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय की दिल्ली में पहली पसंद आम आदमी पार्टी बनी थी. इसका नतीजा था कि कांग्रेस 2013 में दिल्ली में आठ सीटें जीती थीं, जिनमें से चार मुस्लिम विधायक शामिल थे. 2013 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस को पांच और AAP को एक सीट मिली थी. इसके बाद कांग्रेस का वोट आम आदमी के साथ चला गया था, जिसके बाद से कांग्रेस का खाता नहीं खुला.
2015 के चुनाव में मुस्लिम समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग और केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ाव नजर आया. इसका नतीजा रहा कि मुस्लिम बहुल सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने कांग्रेस के दिग्गजों को करारी मात देकर कब्जा जमाया था. आम आदमी पार्टी ने सभी मुस्लिम बहुल इलाकों में जीत का परचम फहराया था. इसका नतीजा था कि केजरीवाल ने अपनी सरकार में एक मुस्लिम मंत्री बनाया था. दिल्ली के मुस्लिम इलाकों में बिजली सप्लाई में सुधार, सड़क और पानी और जैसे मुद्दे अहम रहे. इसका सियासी लाभ 2022 के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी को मिला था.
साल 2020 में सीलमपुर में दंगा हुआ था, जिसके चलते मुस्लिम समुदाय की आम आदमी पार्टी से नाराजगी बढ़ गई थी. इसका लाभ कांग्रेस को दिल्ली के 2022 में हुए एमसीडी चुनाव में मिला था. मुस्लिम बहुल इलाके में कांग्रेस के पार्षद जीतने में कामयाब रहे थे, लेकिन 2024 के चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन होने के नाते मुस्लिमों की नाराजगी केजरीवाल से कम हुई है. लोकसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने एकतरफा वोट कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को दिया था, लेकिन एक बार फिर से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनावी किस्मत आजमा रही हैं. ऐसे में देखना है कि मुस्लिम बहुल सीट पर मुसलमानों की पहली पसंद कौन पार्टी बनती है?।
दिल्ली विधानसभा चुनाव: मुस्लिम वोटरों के लिए AAP का खास प्लान, 5 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट