श्योपुर। ममता के असंख्य रूप है,लेकिन कराहल के जंगलों के बीच बसे अजनोई गांव में मां और बच्चों की ममता के जो नजारे देखने मिलते हैं वह शायद ही आपने कभी देखे और सुने होंगे। यह कहानी है मोरनी के चार बच्चों की। मोरनी के इन चार बच्चों में से तीन बच्चे एक मुर्गी को अपनी मां समझते हैं। दिन-रात मुर्गी के साथ रहते, चुगते और घूमते हैं। वहीं मोरनी का चौथा बच्चा एक आदिवासी महिला को अपनी मां समझता है। इनके जुड़ाव और स्नेह की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।
दरअसल, सावन के महीने में एक मोरनी ने अजनोई गांव की कलेशी बाई (58) पत्नी बंशीलाल आदिवासी के खेत में चार अंडे दिए। उसी दिन कलेशीबाई ने गलती से मोर के अंडों को छू लिया। खेत में लगे महुआ के पेड़ पर बैठी मोरनी ने कलेशीबाई केा अंडों को छूते देख लिया। उसी दिन मोरनी खेत और अंडों को छोड़कर उड़ गई। पांच दिन तक मोरनी नहीं लौटी।
इसके बाद कलेशी बाई ने अपनी एक पालतू मुर्गी को घर से ले जाकर मोरनी के अंडों पर बैठा दिया। करीब 25 दिन चारों अंडों से बच्चे निकले। चार दिन बाद एक बच्चे को कलेशीबाई घर ले आई और तीन बच्चे मुर्गी के साथ खेत में ही रहने लगे। अब मोरनी के बच्चे ढाई महीने के हो गए। धीरे-धीरे उड़ने लगे हैं। पर वह हर समय मुर्गी के साथ खेत के आस-पास ही रहते हैं। रात में महुआ के पेड़ पर बसेरा करते हैं। एक दिलचस्प बात यह भी है कि मोरनी के साथ ही मुर्गी के भी अंडे दिए थे लेकिन, मोरनी के अंडों पर बैठने के बाद मुर्गी अपने अंडों में पल रहे बच्चों को भूल गई।
कलेशी की आवाज सुन दौड़ा चला आता है
मोरनी का चौथा बच्चा कलेशीबाई के साथ रहता है जिसका नाम महिला ने शेरू रखा है। कलेशी बाई दिन खेत पर मुर्गी और मोरनी के तीनों बच्चों को दाना-पानी डालने जाती है। इस दौरान शेरू भी अपने भाई-बहनों से मिलता है लेकिन, जैसे ही कलेशीबाई वहां से घर के लिए लौटती है तो भाई-बहन को छोड़ शेरू महिला के पीछे-पीछे चल देता है। कलेशी की आवाज सुनकर दौड़ा चला आता है। रात में कलेश्ी की खटिया के नीचे सोता है। एक मिनट के लिए भी उससे दूर नहीं होता। बकौल कलेशीबाई पांच दिन पहले वह छिपकर नदी में नहाने चली गई। इसके बाद शेरू ने कूंककूंकर हल्ला मचा दिया।