मैहर। पावन नगरी मैहर मैं त्रिकूट पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति मां जगदंबे भवानी मां शारदा की आराधना के लिए लाखों की तादाद में श्रद्धालुओं का आना जारी है। नवरात्रि के पावन पर्व के सातवें दिन विशेष श्रृंगार और आरती हुई। ऐतिहासिक दस्तावेजों में इस तत्थ का प्रमाण प्राप्त होता है कि सन 539 (522 ई.पू.) चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नृपलदेव ने सामवेदी देवी की स्थापना की थी। प्रसिद्ध इतिहासविद् ए. कनिधम द्वारा मां शारदा मंदिर का काफी अध्ययन किया गया है।
मां शारदा मंदिर में स्थित शिलालेख को कनिधम द्वारा 9वीं अथवा 10वीं शताब्दी से संबंधित होने का अनुमान लगाया गया है। यह शिलालेख आज तक अपनी विशिष्ट लिपि के कारण पढ़ा-समझा नहीं जा सका है। मां शारदा की प्रतिमा के ठीक नीचे स्थित शिलालेख भी अपने अंदर मां की महिमा व इतिहास की अनेक पहेलियों का रहस्य समेटे हुए है।
विद्या, धन और संतना की मनोकामना होती है पूरी
मां के दर्शनार्थ पधारे श्रद्धालुजन को इस स्थान पर विद्या, धन, संतान संबंधी इच्छाओं की पूर्ति होती है परन्तु इस स्थान का उपयोग किसी अनिष्ट संकल्प के लिये नही किया जा सकता। ऐसी मान्यता है कि माता वैष्णवी है तथा सात्विक शारदा सरस्वती का साक्षात स्वरूप है। जो अध्यात्मिक क्षेत्र में बुद्धि, विद्या एवं ज्ञान की प्रदायनी देवी मानी जाती है। मां शारदा मंदिर पिरामिड आकार की पहाडी पर स्थित है। जहां पहुंचने के लिये 1052 पी सीढियां निर्मित हैं।
आल्हा को दिया अमरता का वरदान
मां के भक्त महोबा के महापराक्रमी सेनापति आल्हा का अखाडा भी मां शारदा मंदिर पहाडी के समीप स्थित है। ऐसी मान्यता है कि घोर कलयुग में भी मां शारदा द्वारा आल्हा की भक्ति तथा तपस्या से प्रसन्न हो उन्हें अमरत्व प्रदान किया गया। मां शारदा मंदिर प्रांगण में स्थित फूलमती माता का मंदिर आल्हा की कुल देवी का है जहां विश्वास किया जाता है कि प्रतिदिवस ब्रम्ह मुहूर्त में स्वयं आल्हा द्वारा मां की पूजा अर्चना की जाती है।