मीटिंग चीटिंग वाली राजनीति: अगले महीने I.N.D.I.A गठबंधन की बैठक! इन चार शहरों में साधेगी लोकसभा चुनावों की रणनीति । विपक्षी राजनीतिक दलों के सबसे बड़े गठबंधन समूह I.N.D.I.A की अगली बैठक दिसंबर महीने में हो सकती है। हालांकि इस बैठक से पहले अब एक बार कोऑर्डिनेशन कमिटी की सदस्यों के साथ चर्चा होने की बात की जा रही है। दरअसल जून, जुलाई और अगस्त महीने लगातार हुईं तीन बैठकों के बाद I.N.D.I.A गठबंधन की बैठक नहीं हो सकी। इन तीन महीनों के दौरान गठबंधन के आपसी सहयोगी दलों के बीच में कई तरह के सियासी मनमुटाव भी हुए। सहयोगी दलों के नेताओं ने कांग्रेस के ऊपर जमकर ठीकरा भी फोड़ा। लेकिन गठबंधन से जुड़े नेताओं का कहना है कि 3 दिसंबर को चुनाव परिणाम के बाद दिसंबर के महीने में ही गठबंधन समूह की महत्वपूर्ण बैठक होगी। इस बैठक के लिए फिलहाल अभी किसी शहर का चयन तो नहीं किया गया है, लेकिन अनुमान यही लगाया जा रहा है कि मध्यभारत से उत्तर भारत के किसी राज्य की राजधानी या बड़े शहर में इसको आयोजित किया जाएगा।
विपक्षी दलों के गठबंधन समूह INDIA के सियासी दलों में तीन महीने से आधिकारिक तौर पर कोई भी बड़ी और महत्वपूर्ण बैठक नहीं हो सकी है। हालांकि गठबंधन समूह के नेताओं के कोआर्डिनेशन कमेटी की एक बैठक सितंबर के दूसरे सप्ताह में शरद पवार के दिल्ली वाले घर पर जरूर हुई थी। उस बैठक में जिन बिंदुओं पर चर्चा हुई और उसे आगे बढ़ाने की राय बनी। लेकिन उस पर फिलहाल कोई भी काम नहीं हो सका। गठबंधन समूह में शामिल एक राजनीतिक दल के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पांच राज्यों में विधानसभा के चुनावों के चलते इस तरीके की बैठकर और आयोजन टाले गए थे। क्योंकि 3 दिसंबर को अब विधानसभा चुनावों के परिणाम आ जाएंगे, उसके बाद एक बार फिर से लोकसभा चुनावों के लिए गठबंधन समूह के सभी राजनीतिक दलों को इकट्ठा होकर आगे की रणनीति पर काम करने के लिए बैठना होगा।
हालांकि इस दौरान गठबंधन समूह के नेताओं के बीच अंदरखाने बातचीत हो रही थी। हालांकि यह बातचीत सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ तो नहीं हुई, लेकिन अलग-अलग मौकों पर हुई बातचीत में तय यही हुआ कि दिसंबर के महीने में गठबंधन समूह की बैठक को सबकी सहमति से किया जाए। इसमें गठबंधन समूह अपने “लोगो” समेत चुनाव प्रचार की पूरी रणनीति पर फोकस करते हुए आगे की प्लानिंग तय कर सकेगा। सूत्रों के मुताबिक फिलहाल इस बैठक के लिए दो प्रमुख शहरों के नाम की चर्चा हुई है, लेकिन अभी यह कोई भी शहर फाइनल नहीं है। इसमें देश की राजधानी दिल्ली और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गठबंधन समूह की बैठक करने की बात कही जा रही है। इन दो शहरों में होने वाली बैठक के पीछे कई तरह के सियासी कारण भी बताए जा रहे हैं।
गठबंधन समूह से जुड़े सूत्रों की मानें तो लखनऊ और दिल्ली में होने वाली बैठक के पीछे जो तर्क दिए जा रहे हैं, उसमे पहला तर्क तो यही दिया जा रहा है कि अब तक जितनी भी बैठकें हुई हैं, उसमें कोई भी बैठक मध्य या उत्तर भारत में नहीं हुई। पहली बैठक पटना तो दूसरी बैठक दक्षिण भारत के बेंगलुरु और उसके बाद फिर पश्चिम में मुंबई में बैठक का आयोजन किया गया है। हालांकि कोऑर्डिनेशन कमिटी की एक बैठक सितंबर के दूसरे सप्ताह में दिल्ली में तो हो चुकी है, लेकिन गठबंधन समूह के सभी दलों की बड़ी बैठक उत्तर भारत के किसी राज्य में नहीं हुई है। इसलिए अनुमान यही लगाया जा रहा है कि अगर आम सहमति बनती है, तो दिल्ली या लखनऊ में इस बैठक को किया जा सकता है। इसके अलावा इन दो शहरों में आयोजित की जाने वाली गठबंधन समूह की बैठक से सियासी रूप से कांग्रेस को आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी की तल्खी को दूर करने का बड़ा मौका मिल सकेगा। क्योंकि माना यही जा रहा है अगर इन दोनों राज्यों में कहीं पर भी गठबंधन समूह की बड़ी बैठक होती है, तो होस्ट की भूमिका में यही दोनों सियासी दल होंगे। जिसमें उनकी अगुवाई में ही सभी राजनीतिक दल शिरकत करेंगे। हालांकि गठबंधन समूह से जुड़े कुछ लोगों का मानना है कि यह बैठक मध्यप्रदेश या राजस्थान के भी किसी शहर में भी आयोजित की जा सकती है।
गठबंधन से जुड़े राजनीतिक दल के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि सियासी नजरिए से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ कुछ तल्खियां जरूर दिखीं, लेकिन चुनाव के बाद वह सब सामान्य हो जाएगा। उनका कहना है सितंबर के दूसरे सप्ताह के बाद से लेकर अब तक प्रमुख पक्षी दलों के धड़े में शामिल कांग्रेस लगातार सियासी रूप से अन्य राज्यों में सक्रिय थी, इसलिए गठबंधन समूह की बैठकों के आयोजन को आगे बढ़ाया गया था। हालांकि गठबंधन समूह के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि इस दौरान जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव नहीं थे और वहां के राजनीतिक दल जो कि इन पांच राज्यों में सक्रिय रूप से भागीदारी नहीं निभा रहे थे, उनकी मांग जरूर थी कि गठबंधन समूह की या कोआर्डिनेशन कमेटी की एक बैठक कर आगे के रूपरेखा तय की जाए। इसको लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सार्वजनिक मंच से कांग्रेस के चुनाव में सक्रिय होने और गठबंधन की बैठक या इसकी रूपरेखा तय करने में कोई दिलचस्पी न दिखाने की बात का जिक्र भी किया था।
हालांकि विपक्षी दलों के गठबंधन समूह की इस बैठक से पहले कई तरह के अब सवालों को भी बड़े नेताओं के सामने रखे जाने की योजना बनाई जा रही है। सूत्रों के मुताबिक महत्वपूर्ण चर्चा चुनाव के दौरान पैदा हुई कुछ आपसी सियासी मनमुटाव को लेकर भी होनी हैं। हालांकि खुले तौर पर गठबंधन का कोई भी नेता इसे स्वीकार नहीं कर रहा है। सूत्रों की मानें तो गठबंधन दलों के कुछ सियासी पार्टियों का इन विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी के साथ अंदरूनी तौर पर मनमुटाव हुआ। दोनों दलों के नेताओं की और से खूब तीखे तीर चले और गठबंधन की उपयोगिता पर भी सवाल उठाए गए। हालांकि अब सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की भी हो रही है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच में हुई तल्खी विधानसभा चुनावों के बाद पूरी तरह से खत्म होने वाली है। इसके लिए बाकायदा अंदरूनी तौर पर दोनों पार्टियों के प्रमुख नेताओं के बीच में न सिर्फ बातचीत हुई है, बल्कि आगे के लिए सब कुछ बेहतर सामंजस्य से बढ़ता रहे उसे पर भी बात हुई है।
गठबंधन समूह से जुड़े नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनावों के परिणाम के बाद अब लोकसभा चुनावों के लिए तैयारियां पूरी तरीके से शुरू की जाएगी। इसलिए आगे की रणनीति बनाने की तैयारियों को बढ़ाने की योजनाएं बनाई जा रही हैं। गठबंधन समूह से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि जिस तरीके की चर्चा सियासी गलियारों में गठबंधन को लेकर उठ रही है, दरअसल वह एक सोची समझी साजिश के तहत ही किया जा रहा है। वह कहते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल के बीच में कोई भी अनबन नहीं है। उनका कहना है कि जो कमेटियां गठबंधन समूह की बनाई गई थीं, वह भी दिसंबर से पूरी सक्रियता के साथ आगे बढ़ेंगी।