
वेब डेस्क। राज्यसभा की दस सीटों के लिए हुए चुनाव में क्रॉस वोटिंग का खेल तो पहले ही जगजाहिर हो गया लेकिन, दिनभर बदलते घटनाक्रम ने सियासी रहस्य गहरा कर दिया है। भाजपा अपनी रणनीति और गणित के हिसाब से यह दावा कर रही है कि उसका हर फार्मूला कामयाब हुआ लेकिन, बड़ा सवाल यही है कि सहयोगी दल के दो विधायकों के मतों को लेकर दिनभर संदेह बना रहा तो आखिर भाजपा को घोषित मतों से भी ज्यादा एक मत किसका मिला।
भाजपा ने अपने आठ उम्मीदवारों के लिए 39-39 मत आवंटित किये थे। नवें उम्मीदवार के लिए भाजपा ने 16 मत आवंटित किये और उन्हें जिताने के लिए दूसरी वरीयता के मतों पर जोर दिया। इस हिसाब से भाजपा को कुल 328 विधायकों के मत मिले। कुल पड़े वैध मतों में भाजपा और सहयोगी दलों के मत जोड़कर 323 होते हैं। इस हिसाब से उन्हें पांच अतिरिक्त मत मिले। पहले से ही तय अमनमणि त्रिपाठी, विजय मिश्र, सपा के नितिन अग्रवाल और बसपा के अनिल सिंह के मत जोड़ने के बाद यह सवाल उठना लाजिमी है कि पांचवां मत किसका था।
यह सवाल तब है कि जब राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के साथ खड़े रघुराज प्रताप सिंह ने सपा के साथ खुलकर रहने का एलान किया था लेकिन, मतदान के बाद वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने चले गए थे। कयास यही लगा कि रघुराज प्रताप सिंह ने अपना वादा निभाते हुए सपा का साथ दिया लेकिन उनके दम पर विधायक बने विनोद सरोज का मत भाजपा के पाले में चला गया। पर, इस दावे की बहुत हद तक पुष्टि नहीं हो सकी। यद्यपि भाजपा के कई वरिष्ठ नेता तो रघुराज प्रताप सिंह और विनोद सरोज के मत को भी अपने हिस्से में जोड़ते रहे।
मतदान के समय सुबह ही सुभासपा के कैलाश सोनकर और त्रिवेणी राम की भूमिका पर भी सवाल उठे। भाजपा के कुछ लोगों ने कैलाश सोनकर के मत को बसपा खेमे में जाने का दावा किया। बसपा के एक वरिष्ठ विधायक ने भी बताया कि उन्हें कैलाश सोनकर का मत मिला। अगर, एक पल के लिए मान लिया जाए कि कैलाश सोनकर ने भाजपा का साथ नहीं दिया तो फिर एक दूसरा विधायक कौन है जिसने भाजपा के उम्मीदवार को मत दिया।
खेल कहीं न कहीं है। वैसे तो भाजपा के चुनावी प्रबंधन से जुड़े प्रदेश उपाध्यक्ष जेपीएस राठौर का कहना है कि हमारे दल ने जो आवंटन किया वह पूरी तरह खरा उतरा। फिर ऐसे में सहयोगी दल के कैलाश सोनकर या किसी की भूमिका पर सवाल भी नहीं उठाया जा सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञों का दावा है कि हर खेमे में क्रास वोटिंग हुई है।