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दो साल में विकसित नहीं कर सके घास के मैदान, आखिर क्‍यों

       

जबलपुर। जिले व आस पास के जंगलों में दो साल में भी अधिकारी घास के मैदान विकसित नहीं कर सके। इसके कारण जंगल में शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या नहीं बड़ पाएंगी। बाघ व तेंदुए जैसे मांसाहारी वन्यजीवों को आसानी से शिकार नहीं मिलेगा।

वे गर्मी के दिनों में जंगल से निकलकर आबादी तक पहुंचेंगे। मानव और उनके बीच आपसी संघर्ष की स्थिति बन सकती है। घास के मैदान विकसित नहीं कर पाने की वजह अधिकारी बजट की कमी होना बता रहे हैं।

जबलपुर सामान्य वनमंडल की बरगी व कुंडम रेंज में बाघों व तेदुओं का मूवमेंट रहता हैं। ये पेच अभयारण्य व बाधोंगढ़ के जंगल से जिले की तरफ आते हैं। गर्मी में ऐसा अधिक होता हैं।

जंगल में शिकार की कमी व पानी की कमी के कारण ये आबादी तक पहुंचते हैं। बाघों को जंगल के भीतर ही चीतल, हिरण जैसे शिकार की उपलब्धता सुनिश्चित कराने घास के मैदान विकसित कराने के निर्देश दिए थे। जिस पर दो साल में कोई काम नहीं हुआ।
जंगल में घास के मैदान विकसित कर चीतल व हिरण छोड़ने थे लेकिन वन विभाग के अधिकारी घास के मैदान ही विकसित नहीं कर सके। इसके कारण हिरण-चीतल छोड़ना मुश्किल हैं। वन्यप्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल का बड़ा हिस्सा झाड़ियों से भरा है। इन झाड़ियों को हटाकर घास के मैदान विकसित करने से शाकाहारी वन्यजीवों को आसानी से पर्याप्त भोजन मिल सकता है।

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