Breaking
15 Mar 2025, Sat

खाना पीना छोड़ने का नाम तप नहीं है बल्कि मन को नियंत्रण में रखकर अपने में रमना वास्तविक तप की श्रेणी में आता है

...

कटनी। पर्वराज पयूर्षण पर्व के 7 वें ‘तप‘ धर्म चर्चा करते हुये प.पू. निर्यापक मुनि समता सागर जी महाराज ने धर्मसभा में बतलाया कि खाना पीना छोड़ने का नाम तप नहीं है बल्कि मन को नियंत्रण में रखकर अपने में रमना वास्तविक तप की श्रेणी में आता है।

मुनिश्री ने आगे कहा कि विषय कषायों से जब तक आप अपने आपको मुक्त नहीं करते तब तक आपका तप की प्राप्ति नहीं हो सकती। उन्होने ने आगे कहा कि अशक्ति मिटने से आत्मा में तेज बढ़ता है, आत्म शक्ति बढ़ती है।

अतः आप अशक्ति से दूर होकर आत्म कल्याण के मार्ग में लगे मुनिश्री ने आगे कहां कि मंदिर में बैठकर धर्म करने वाले का धर्म बढ़ा माना जावेगा और बाजार दुकान आदि में बैठकर धर्म छोटा माना जाता है। उन्होने ने आगे बतलाया कि इच्छाओं का निरोध करना ही तप माना जाता है और तप का पालन करने से संयम की सिद्धी प्राप्त होती है और तप के माध्यम से कर्मो की निर्जरा एवं ध्यान की सिद्धी प्राप्त होती है।

शाम को समाज की सभी संस्थाओं के पदाधिकारियों एवं सदस्यों के द्वारा आचार्य विद्यासागर सभागार में नगर में प्रथमवार 5100 दीपों से संगीतमय नृत्य कर महाआरती कर पुण्य लाभ अर्जित किया गया ।

 

By Ashutosh shukla

30 वर्षों से निरन्तर सकारात्मक पत्रकारिता, संपादक यशभारत डॉट काम